पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बोष आ। इसमें कौनसी हेठी हुई जाती है। यह याना थोड़े ही है कि आपके रोबमें फर्क पड़ जायगा। ठाकुर साहबने उसकी ओर भी ध्यानसे देखकर पूछ-क्या तुम्हें भी मुझसे कोई बैर है। 'जी हाँ, मैं तो आपके खूनका प्यासा हूँ। 'मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है, तुम्हारी तो सूरत भी नहीं देखी। दूसरा मुसाफिर-~-आपने मेरी सूरत न देखी होगी, पर आपकी मैने देखी है । इसी कलके मेले में आपने मुझे कई डण्डे लगाये, मै चुपचाप तमाशा देखता था, पर आपने आकर मेरा कचूमर निकाल लिया। मैं चुपचाप रह गया, पर घाव दिलपर लगा हुआ है । आज उसकी दवा मिलेगी। यह कहकर उसने और भी पॉव फैला दिये और क्रोधपूर्स नेत्रोंसे देखने लगा। परिमतजी अबतक चुपचाप खड़े थे। डरते ये कि कहीं मारपीट न हो जाय। अवसर पाकर अकुर साहबको समझाया । ज्योंही तीसरा स्टेशन आया, ठाकुर साहबने बालबच्चों- को वहासे निकालकर दूसरे कमरेमें बैठाया । इन दोनों दुष्टोंने उनका असबाब उठा उठाकर जमीनपर फेंक दिया। जब ठाकुर साहब गाड़ीसे उतरने लगे तो उन्होंने उनको ऐसा धक्का दिया कि बेधारे प्लेटफार्मपर गिर पड़े। गार्डसे कहने दौड़े थे कि इजिनने सीटी दी। जाकर गाडीमें बैठ गये। [३] उधर मुन्शी वैजनाथकी और भी बुरी दशा थी। सारी रात