पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१६७

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प्रेम-पूर्णिमा जागते गुजरी। जरा पैर फैलानेकी जगह न थी। आज उन्होंने जेबमें बोतल भरकर रख ली थी। प्रत्येक स्टेशनपर कोयला पानी ले लेते थे। फल यह हुआ कि पाचन क्रियामें विन्न पड़ गया। एक बार उल्टी हुई और पेटमें मरोड़ होने लगी। वेचारे बड़ी मुश्किल में पडे । चाहते थे कि किसी भाति लेट जायँ, पर वहाँ पैर हिलानेको भी जगह न थी। लखनऊतक तो उन्होंने क्रिसी तरह जब्त किया। आगे चलकर विवश हो गये। एक स्टेशनपर उतर पड़े । खड़े न हो सकते थे। प्लेटफार्मपर लेट गये। पत्नी भी घबराई। बच्चोंको लेकर उतर पड़ी। असबाब उतारा, परन्तु जल्दीमें टङ्क उतारना भूल गई। गाड़ी चल दी। दारोगाजीने अपने मित्रको इस दशामे देखा तो वह भी उतर पड़े। समझ गये कि हजरत आज ज्यादा चढ़ा गये। देखा तो मुन्शीजीकी दशा बिगड़ गयी थी। ज्वर, पेटमे दर्द, नसोंमें तनाव, कै और दस्त । बड़ा खटका हुआ। स्टेशन मास्टरने यह दशा देखी तो समझा हैजा हो गया है। हुक्म दिया कि रोगीको अभी बाहर ले जाओ। विवश होकर लोग सुन्धीजीको एक पेड़- के नीचे उठा लाये। उनकी पत्नी रोने लगी। हकीम शक्टरकी तलाश हुई। पता लगा कि डिस्ट्रिक्टबोर्डकी तरफसे वहाँ एक छोटा सा अस्पताल है। लोगोंकी जानमे जान आयी। किसीसे यह भी मालूम हुआ कि डाक्टर साहब बिल्हौरके रहनेवाले हैं। ढाइस बँधा । दारोगाजी अस्पताल दौड़े। डाक्टर साहबसे सारा समाचार कह सुनाया और कहा-आप चलकर जरा उन्हें देख तो लीजिये। अक्टरका नाम था चोखेलाल। कम्पौडर थे, लोग आदरसे