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ईश्वरीय न्याय
 

चढ गये। वहाॅ विश्राम करनेवाले सॉढने समझा ये मुझे पदच्युत करने आये हैं। माथा झुकाये, फुॅकारता हुआ उठ बैठा, पर इसी बीचमें बग्घी निकल गयी और मुन्शीजीकी जान-मे-जान आयी। अबकी उन्होंने तर्कका आश्रय न लिया। समझ गये कि इस समय इससे कोई लाभ नही। खैरियत यह हुई कि वकीलने देखा नही। वह एक ही घाघ है। मेरे चेहरेसे ताड़ जाॅता।

कुछ विद्वानोंका कथन है कि मनुष्यकी स्वाभाविक प्रवृत्ति पापकी ओर होती है, पर यह कोरा अनुमान ही अनुमान है, बात अनुभव सिद्ध नहीं। सच बात यह है कि मनुष्य स्वभावतः पाप-भीरू होता है और हम प्रत्यक्ष देख रहे हैं कि पापसे उसे कैसी घृणा होती है।

एक फरलाँग आगे चलकर मुन्शीजीको एक गली मिली। यही भानुकुॅवरिके घरका रास्ता था। एक धुँधली-सी लालटेन जल रही थी। जैसा मुन्शीजीने अनुमान किया था, पहरेदारका पता न था। अस्तबलमें चमारोके यहाॅ नाच हो रहा था। कई चमारिने बनाव-सिगार करके नाच रही थी। चमार मृदङ्ग बजा बजाकर गाते थे—

'नाही घरे श्याम, घेरी आये बदरा
सोवत रहेऊँ सपन एक देखेऊँ रामा
खुलि गई नींद ढरक गये कजरा
नाही धरे श्याम, घेरी आये बदरा

दोनों पहरेदार वहीं तमाशा देख रहे थे। मुन्शीजी दबे पॉव