पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१७२

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१७१ सचाईका उपहार शिक्षकका गौरख समझा। उन्हे आज इस पदकी महानताशात यह लोग तीन दिन अयोध्या रहे। किसी मातका कष्ट न हुआ। कृपाशङ्करने उनके साय जाकर प्रत्येक धामका दर्शन कराया। तीसरे दिन जब लोग चलने लगे तो वह स्टेशनतक पहुँचाने आया । जब गाड़ीने सीटी दी तो उसने सजल नेत्रोंसे पडितजीके चरण छुए और बोला-कभी कभी इस सेवकको याद करते रहियेगा। पण्डितजी घर पहुंचे तो उनके स्वभाव में बड़ा परिवर्तन हो गया था। उन्होंने फिर किसी दूसरे विभागमें जानेकी चेष्टा नही की। सचाईका उपहार-- [१] तहसीली भदरसा बरॉवके प्रथमाध्यापक मुन्शी भवानी- सहायको बागवानीका कुछ व्यसन था। क्यारियों में भाति भातिके फूल और पत्तियों लगा रखी थीं। दरवाजोंपर लतायै चढ़ा दी यी। इससे मदरसेकी शोभा अधिक हो गई थी। वह मिडिल कक्षाके लड़कोंसे भी अपने बगीचेके सीचने और साफ करने में