पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१७३

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प्रेम-पूर्णिमा १७२ मदद लिया करते थे। अधिकाश लड़के इस कामको रुचिपूर्वक करते। इससे उनका मनोरंजन होता था। किन्तु दरजे में चार- पॉच लड़के जमीदारोंके थे। उनमे ऐसी दुर्जनता थी कि यह मनोरंजक कार्य भी उन्हें बेगार प्रतीत होता । उन्होंने बाल्यकाल. से आलस्य में जीवन व्यतीत किया था। अमीरीका झुठा अभिमान दिलमें भरा हुआ था। वह हाथमे कोई काम करना निन्दाकी बात समझते थे। उन्हें इस बगीचेमे घृणा थी। जब उनके काम करनेकी बारी आती तो कोई न कोई बहाना करके उड़ जाते। इतना ही नहीं, दूसरे लड़कोंको बहकाते और कहते- वाह ! पढ़े फारसी, बेचे तेल ! यदि खुरपी कुदाल ही करना है तो मदरसेमें किताबोंसे सिर मारनेकी क्या जरूरत ! यहाँ पढ़ने आते हैं, कुछ मजूरी करने नहीं आते। मुन्शीजी इस अवज्ञा के लिए उन्हें कभी-कभी दण्ड दे देते थे। इससे उनका द्वेष और भी बढ़ता था। अन्तमें यहॉतक नौबत पहुँची कि एक दिन उन लडकोने सलाह करके उस पुष्प वाटिकाको विध्वंस करनेका निश्चय किया। दस बजे मदरसा लगता था, किन्तु उस दिन वह आठ ही बजे आ गये और बगीचेमें घुसकर उसे उजाड़ने लगे। कहीं पौधे उखाड़ फेके, कही क्यारियोंको रौंद डाला, पानीकी नालियाँ तोड़ डाली, क्यारियोंकी मेड़े खोद डाली। मारे भयके छाती धड़क रही थी कि कहीं कोई देखता न हो। लेकिन एक छोटी-सी फुलवारीको उजाड़ते कितनी देर लगती है ? दस मिनिट- में हरा-भरा बाग नष्ट हो गया । तब यह लड़के शीघ्रतासे निकले, लेकिन दरवाजेतक आये थे कि उन्हें अपने एक सहपाठीकी सूरत दिखाई दी। यह एक दुबला, पतला, दरिद्र और चतुर