पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१७४

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सचाईका उपहार लड़का था । उसका नाम बाजबहादुर था । बड़ा गम्भीर, शान्त लड़का था। ऊधम पार्टीके लड़के उससे जलते थे। उसे देखते ही उनका रक्त सूख गया। विश्वास हो गया कि इसने जरूर देख लिया। यह मुन्शीजीसे कहे बिना न रहेगा। बुरे फसे आज कुशल नही है। यह राक्षस इस समय यहाँ क्या करने आया था। आपसमें इशारे हुए। यह सलाह हुई कि इसे मिला लेना चाहिये । जगतसिंह उनका मुखिया था। आगे बढ़कर बोला- आज इतने सवेरे कैसे आ गये? हमने तो आज तुम लोगोंके गलेकी फॉसी छुडा दी। लाला बहुत दिक किया करते थे, यह करो, वह करो। मगर यार देखो, कहीं मुन्शीजीसे जड मत देना, नहीं तो लेने के देने पड़ जायेंगे। जयरामने कहा-कह क्या देगे अपने ही तो हैं। हमने जो कुछ किया है वह सबके लिये किया है, केवल अपनी ही भलाई के लिये नहीं। चलो यार, तुम्हें बाजारकी सैर करा दे, मुंह मीठा करा दें। बाजबहादुरने कहा-नही, मुझे आज घरपर पाठ याद करने का अवकाश नहीं मिला । यही बैठकर पढ़गा। जगतसिंह-अच्छा, मुन्शीजीसे कहोगे तो न? बाजबहादुर-मै स्वयम् कुछ न कहूँगा, लेकिन उन्होंने मुझसे पूछ तो? जगतसिंह-कह देना मुझे नहीं मालूम । बाजबहादुर-यह झूठ मुझसे न बोला जायगा। जयराम---अगर तुमने चुगुलो खाई और हमारे ऊपर मार पड़ी तो हम तुम्हें पीटे बिना न छोड़ेगे।