पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१७५

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प्रेम पूर्णिमा बाजबहादुर-हमने कह दिया कि चुगली न खायेंगे लेकिन मुन्धीजीने पूछा तो झूठ भी न बोलेगे । जयराम-तो हम तुम्हारी हड्डियाँ भी तोड़ देगे। बाजबहादुर-इसका तुम्हे अधिकार है। [ [ २ ] दस बजे जब मदरसा लगा और मुन्शी भवानीसहायने बाग- की यह दुर्दशा देखो तो क्रोधसे आग हो गये । बागके उजड़नेका इतना खेद न था जितना लडकोंकी शरारतका । यदि किसी सॉडने यह दुष्कृत किया होता तो वह केवल हाथ मलकर रह जाते। किन्तु लडकोके इस अत्याचारको सहन न कर सके। ज्योंही लडके दरजेमें बैठ गये, वह तीवर बदले हुए आये और यूछा-यह बाग किसने उजाडा है? कमरेमें सन्नाटा छा गया। अपराधियों के चेहरोपर हवाइयाँ उड़ने लगी। मिडल कक्षाके २५ विद्यार्थियोमें कोई ऐसा न था जो इस घटनाको न जानता हो, किन्तु किसीमे यह साहस न था कि उठकर साफ साफ कह दे। सब के सब सिर मुकाये मौन धारण किये बैठे थे। मुन्धीजीका क्रोध और भी प्रचड हुआ। चिल्लाकर बोले- मुझे विश्वास है कि यह तुम्ही लोगों से किसीकी शरारत है। जिसे मालूम हो स्पष्ट कह दे, नही तो मैं एक सिरेसे पीटना शुरू करूँगा, फिर कोई यह न कहे कि हम निरपराध मारे गये। एक लड़का भी न बोला । वही सन्नाटा। मुन्धीजी-देवीप्रसाद, तुम जानते हो?