पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१७६

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१७५ here are देवी-जी नहीं, मुझे कुछ नहीं मालूम । "शिवदास, तुम जानते हो?" 'जी नहीं, मुझे कुछ नहीं मालूम ।' 'बाजबहादुर, तुम कभी झूठ नहीं बोलते, तुम्हें मालूम है ? बाजबहादुर खडा हो गया, उसके मुख-मण्डलपर वीरत्वका प्रकाश था। नेत्रोमे साहस झलक रहा था। बोला-जी हाँ! मुन्शीजीने कहा-~-शाबाश । अपराधियोने बाजेबहादुरकी ओर रक्तवर्ण आँखोंसे देखा और मनमें कहा--अच्छा । [३] भवानीसहाय बड़े धैर्यवान मनुष्य थे। यथाशक्ति लड़कोंको यातना नहीं देते थे। किन्तु ऐसी दुष्टताका दंड देनेमें वह लेश- मात्र भी दाया न दिखाते थे । छड़ी मॅगाकर पांचों अपराधियोंको दस-दस छडियाँ लगाई , सारे दिन बैंचपर खड़ा रखा और चालचलनके रजिस्टर में उनके नामके सामने काले चिह्न बना दिये। बाजबहादुरसे शरारत पार्टीवाले लड़के योंही जला करते थे, आज उसकी सचाईके कारण उसके खूनके प्यासे हो गये। यन्त्रणामें सहानुभूमि पैदा करनेकी शक्ति होती है। इस समय दरजेके अधिकाश लडके अपराधियों के मित्र हो रहे थे। उनमें षड्यन्त्र रचा जाने लगा कि आज बाजबहादुरकी खबर ली जाय । ऐसा मारो कि फिर मदरसेमें मुंह न दिखावे । यह हमारे घरका भेदी है। दगाबाज! बड़ा सच्चेकी दुम बना है। आज इस सचाईका हाल मालूम हो जायगा । बेचारे बाजवहादुरको