पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१७७

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प्रेम पूर्णिमा १७६ इस गुप्तलीलाकी जरा भी खबर न थी। विद्रोहियोने उसे अन्ध- कारमें रखनेका पूरा यत्न किया था। छुट्टी होनेके बाद बाजबहादुर घरकी तरफ चला | रास्तेमें एक अमरूदका बाग था। वहाँ जगतसिंह और जयराम कई लड़कोंके साथ खडे थे। बाजबहादुर चौका, समझ गया कि यह लोग मुझे छेड़नेपर उतारू हैं। किन्तु बचनेका कोई उपाय न था । कुछ हिचकता हुआ आगे बढ़ा । जगतसिह बोला-आओ लाल | बहुत राह दिखाई। आओ सचाईका इनाम लेते जाओ। बाजबहादुर-रास्तेसे हट जाओ, मुझे जाने दो। जयराम--जरा सचाईका मचा तो चखते जाइये। बाजबहादुर--मैंने तुमसे कह दिया था कि जब मेरा नाम लेकर पूछेगे तो मै बता दूंगा जयराम-हमने भी तो कह दिया था कि तुम्हें इस कामका इनाम दिये बिना न छोड़ेगे। यह कहते ही वह बाजबहादुरकी तरफ घुसा तानकर बड़ा । जगतसिंहने उसके दोनों हाथ पकड़ने चाहे । जयरामका छोटा भाई शिवराम अमरूदकी एक टहनी लेकर झपटा। शेष लड़के चारों तरफ खड़े होकर तमाशा देखने लगा। यह 'रिजर्व सेना थी जो आवश्यकता पड़नेपर मित्रदलकी सहायताके लिये तैयार थी। बाजबहादुर दुर्बल लड़का था। उसकी मरम्मत करनेको वह तीन मजबूत लड़के काफी थे। सब लोग यही समझ रहे थे कि क्षण भरमें यह तीनों उसे गिरा लेंगे। बाजबहादुरने जब देखा कि शत्रुओंने शस्त्रप्रहार करना शुरू कर दिया ।।- उसने कनखियोंसे इधर उधर देखा। तब तेजीसे झपटकर शिवरामके हाथसे अमरूद