पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१७७ सचाईका उपहार को टड्नी छीन ली और दो कदम पीछे इटकर रहनी ताने हुए बोला-तुम मुझे सचाईका इनाम या सजा देनेवाले कौन होते हो? दोनो ओरसे दॉव-पेच होने लगे। बाजबहादुर था तो कम- जोर, पर अत्यन्त चपल और सतर्क था, उसपर सत्यका विश्वास हृदयको और भी बलवान बनाए हुए था। सत्य चाहे सिर कटा दे, लेकिन कदम पीछे नहीं हटाता। कई मिनटतक बांजबहादुर उछल-उछलकर वार करता और हटाता रहा । लेकिन अमरूदकी टहनी कहाँतक याम सकती। जरा देरमें उसकी धज्जियां उड़ गयीं। जबतक उसके हाथमें वह इरी तलवार रही कोई उसके निकट आनेकी हिम्मत न करता था। निहत्था होनेपर भी वह ठोकरों और घूसोंसे जवाब देता रहा। मगर अन्तमें अधिक संख्याने विजय पायी। बाजबहादुरकी पसलीमें जयरामका एक चूसा ऐसा पड़ा कि वह बेदम होकर गिर पड़ा। आँखें पथरा गयी और मूर्छासी आ गयी। शत्रु ओंने यह दशा देखी तो उनके हाथोंके तोते उड़ गए । समझे इसकी जान निकल गयी। बेतहासा भागे। [४] कोई दस मिनटके पीछे बाजबहादुर सचेत हुआ। कलेजे पर चोट लग गयी थी। घाव ओछा पड़ा था, तिसपर भी खड़े होनेकी शक्ति न थी। साहस करके उठा और लंगड़ाता हुआ घरकी ओर चला। उधर यह विजयी दल भागते-भागते जयरामके मकानपर