पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१७९

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प्रेम पूर्णिमा पहुँचा। रास्ते हीमें सारा दल तितर बितर हो गया । कोई इघरसे निकल भागा कोई उधरसे, कठिन समस्या आ पड़ी थी। जय- रामके घरतक केवल तीन सुदृढ लडके पहुँचे। वहाँ पहुँचकर उनकी जान-में-जान आयी। जयराम-कही मर न गया हो, मेरा घूमा खूब बैठ गया था। जगतसिंह-तुम्हें पसलीमें नही मारना चाहिये था । अगर तिल्ली फट गयी होगी तो न बचेगा। जयराम- यार मैने जानके थोड़े ही भारा था। सयोग ही था। अब बताओ क्या किया जाय? जमतसिंह-करना क्या है चुपचाप बैठे रहो । जयराम----कही मै अकेला तो न फंसू गा! जगतसिंह---अकेले कौन फंसेगा, सब के सब साथ चलेगे। जयराम-अगर बाजबहादुर मरा नहीं है तो उठकर सीधे मुन्धीजीके पास जायगा। जगतसिंह--और मुन्शीजी कल हम लोगोंकी खाल अवश्य उधेडेंगे। जयराम-इसलिये मेरी सलाह है कि कलसे मदरसे जाओ ही नही । नाम कटाके दूसरी जगह चले चले। नहीं तो बीमारी- का बहाना करके बैठे रहें। महीने दो महीनेके बाद जब मामला ठबढा पड जायगा तो देखा जायगा। शिवराम-और नो परीक्षा होनेवाली है ! जयराम-ओ हो! इसका तो खयाल ही न था। एक ही महीना तो और रह गया है।