प्रेम पूर्णिमा उन्होंने यह पता तो लगा लिया था कि इस समरके अन्य सभी योद्धागण मदरसे आते हैं और मुन्शीजी उनसे कुछ नहीं बोलते, किन्तु चित्तसे शङ्का दूर न होती थी । बाजबहादुरने जरूर कहा होगा। हम लोगोके जानेकी देर है। गये और बेभावकी पड़ी। यही सोचकर मदरसे आनेका साहस न कर सकते थे। [५] चौथे दिन प्रातःकाल तीनों अपराधी बैठे सोच रहे थे कि आज किधर चलना चाहिये। इतने में बाजबहादुर आता हुआ दिखाई दिया । इन लोगोंको आश्चर्य तो हुआ परन्तु उसे अपने द्वारपर आते देखकर कुछ आशा बॅध गयी। यह लोग अभी बोलने भी न पाये थे कि बाजबहादुरने कहा-क्यों मित्रों, तुम लोग मदरसे क्यों नहीं आते ! तीन दिनसे गैरहाजिरी हो रही है। जगतसिंह-मदरसे क्या जायँ, जान भारी पड़ी है ! मुन्शी- जी एक हड्डी भी तो न छोड़ेंगे। बाजबहादुर--क्यों, वलीमुहम्मद, दुर्गा, सभी तो जाते हैं। मुन्शीजीने किसीसे भी कुछ कहा ? जयराम-तुमने उन लोगोंको छोड़ दिया होगा, लेकिन हमें भला तुम क्यो छोड़ने लगे। तुमने एक-एक की तीन-तीन जड़ी होगी। बाजबहादुर-आजमदरसे चलकर इसकी परीक्षा ही कर लो। जगतसिह-यह सोसे रहने दीजिये। हमें पिटवानेकी बाजबहादुर-तो मैं कहीं भागा तो नही जाता ? उस दिन