पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१८३

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प्रेम-पूर्णिमा १८२ मिला तो तीनों मित्र और उनके सहयोगी जमा होकर बातें करने लगे । जयराम---हम तो जानपर खेलकर मदरसे आये थे, मगर बाजबहादुर है बातका धनी। बलीमुहम्मद-मुझे तो ऐसा मालूम होता है वह आदमी नहीं देवता है। यह आँखों देखी बात न होती तो मुझे कभी इसपर विश्वास न आता। जगतसिंह-भलमनसी इसोको कहते हैं। हमसे बड़ी भूल हुई कि उसके साथ ऐसा अन्याय किया। दुर्गा-चलो उससे क्षमा मार्गे । जयराम - हॉ, यह तुम्हे खूब सूझी। आज ही। जब मदरसा बन्द हुआ तो दरजेके सब लड़के मिलकर बाज- बहादुरके पास गये । जगतसिंह उनका नेता बनकर बोला-भाई साइब हम सब के सब तुम्हारे अपराधी हैं। तुम्हारे साथ हम लोगोने जो अत्याचार किया है, उसपर हम हृदयसे लज्जित हैं। हमारा अपराध क्षमा करो। तुम सज्जनताकी मूर्ति हो, हम लोग उजडू, गँवार और मूर्ख है, हमें अब क्षमा प्रदान करो। बाजबहादुरकी आँखोंमें ऑसू भर आये, बोला-भै पहले भी तुम लोगोंको अपना भाई समझता था और अब भी वही सम- झता हूँ । भाइयोंके झगडे में भमा कैसी ? सब के सब उससे गले मिले। इसकी चर्चा सारे मदरसे में फैल गयी। सारा मदरसा बाजबहादुरकी पूजा करने लगा। वह अपने मदरसका मुखिया, नेता और शिरमौर बन गया ।