पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१८५

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ज्वालामुखी चातके पोछे ऐसा फूल उठा, इसीको लड़कपन कहते हैं। जहाँ तक मेरा ख्याल है, किसी दिल्लगीबाजने आजकल शिश्चित समाजकी मूर्खताकी परीक्षा करनेके लिये यह स्वाग रचा है। मुझे इतना भी न सूझा । मगर आठवे दिन प्रातःकाल तारके चपरासीने मुझे आवाज दी। मेरे हृदयमें गुदगुदी-सी होने लगी। लपका हुआ आया । वार खोलकर देखा, लिखा था- वीकार है, शीघ्र आओ ऐशगढ। मगर यह सुख सम्वाद पाकर मुझे वह आनन्द न हुआ जिसकी आशा थी। मैं कुछ देरतक खड़ा सोचता रहा, किसी तरह विश्वास न आता था । जरूर किसी दिल्लगीबाजकी शरारत है। मगर कोई मुजायका नही, मुझे भी इसका मुहताड़ जवाब देना चाहिये । तार दे दूं कि एक महीनेकी तनख्वाह मेज दो। आप ही सारी कलई खुल जायगी। मगर फिर विचार किया, कहीं वास्तव में नसीब जगा हो तो इस उद्दडतासे बना-बनाया खेल बिगड़ जायगा। चलो दिल्लगी ही सही। जीवनमें यह पटना भी स्मरणीय रहेगी। तिलस्मको खोल ही डालू । यह निश्चय करके तार द्वारा अपने आनेकी सूचना दे दी और सीधे रेलवे स्टेशनपर पहुंचा । पुछनेपर मालूम हुआ कि यह स्थान दक्खिनकी ओर है। टाइमटेबुलमें उसका वृत्तान्त विस्तारके साथ लिखा था । स्थान अति रमणीय है, पर जलवायु स्वास्थ्य कर नहीं। हॉ, हृष्टपुष्ट नवयुवकोंपर उसका असर शीघ्र नहीं होता । दृश्य बहुत मनोरम है पर जहरीले जानवर बहुत मिलते हैं। यथासाध्य अन्धेरी घाटियोंमें न जाना चाहिये। यह वृत्तान्त पदकर उत्सुकता और भी बढ़ी। जहरीले जानवर है तो हुआ