पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१९१

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ज्वालामुखी के लिये ही हैं, उनसे और कोई लाभ नहीं है। यह भौतिक उन्नतिका समय है। आजकल लोग भौतिक सुखपर अपने प्राण अर्पण कर देते हैं। कितने ही लोगोंने अपने चित्र भी भेजे थे। कैसी कैसी विचित्र मूर्तियों थी जिन्हे देखकर घण्टों हंसिये। मैने उन सभोंको एक अलबममे लगा लिया है और अवकाश मिलने- पर जब हँसनेकी इच्छा होती है तो उन्हें देखा करती हूँ। मैं उस विद्याको रोग समझती हूँ जो मनुष्यको बनमानुष बना दे। आपका चित्र देखते ही ऑखे मुग्ध हो गयी, तत्क्षण आपको बुलानेको तार दे दिया। मालूम नही क्यो, अपने गुणस्वभावको प्रशसाकी अपेश्चा हम अपने वाह्य गुणोकी प्रशसासे अधिक सन्तुष्ट होते हैं और एक सुन्दरीके मुखसे तो वह चलते हुए जादूके समान है। बोला यथासाध्य आपको मुझसे असन्तुष्ट होने का अवसर न मिलेगा। सुन्दरीने मेरी ओर प्रशसापूर्ण नेत्रोंसे देखकर कहा-इसका मुझे पहले हीसे विश्वास है। आइये अब कुछ कामकी बातें हो जायें । इस घरको आप अपना ही समझिये और सकोच छोड़कर आनन्दसे रहिये। मेरे भक्तों की संख्या बहुत है। वह ससारके प्रत्येक भागमें उपस्थित हैं और बहुधा मुझसे अनेक प्रकारकी- जिज्ञासा किया करते हैं। उन सबको मैं आपके सुपुर्द करती हूँ। आपको उनमें भिन्न-भिन्न स्वभावके मनुष्य मिलेंगे। कोई मुझसे सहायता मांगता है, कोई मेरी निन्दा करता है, कोई सराहता है, कोई गालियाँ देता है। इन सब प्राणियोंको सन्तुष्ट रखना आपका काम है। देखिये यह आजके पत्रोंका ढेर है। एक