पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१९३

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ज्वालामुखी . हैं. धर्मात्मा लोग इसे भी न्याय कहते हैं, किन्तु यहाँ भी वही धन और अधिकारकी प्रचण्डता है। भद्र पुरुषने कितने ही घरों को लूटा, कितनोहोका गला दबाया और इस प्रकार धन संचय किया, किसीको भी उन्हे आँख दिखानेका साहस न हुआ । डाकूने जब उनका गला दबाया तो वह अपने धन और प्रभुत्व- के बलसे उसपर वनप्रहार कर बैठे। मै इसे न्याय नही कहती। संसारमें धन, छल, कपट, धूत ताका राज्य है, यही जीवन- संग्राम है। यहाँ प्रत्येक साधन जिससे हमारा काम निकले, जिससे हम अपने शत्रुओंपर विजय पा सके, न्यायानुकूल और उचित है ? धर्मयुद्धके दिन अब नही रहे। वह देखिये, यह एक दूसरे सजनका पत्र है । वह कहते हैं-'मैने प्रथम श्रेणीमे एम० ए० पास किया, प्रथम श्रेणी में कानूनकी परीक्षा पास की, पर अब कोई मेरी बात भी नहीं पूछता। अबतक यह आशा थी कि योग्यता और परिश्रमका अवश्य ही कुछ फल मिलेगा पर तीन साल के अनुभवसे ज्ञात हुआ कि यह केवल धार्मिक नियम है। तीन सालमें बरकी पूंजी मी खा चुका । अब विवश होकर आपकी शरण लेता हूँ । मुझ इतभाग्य मनुष्यपर दया कीजिये और मेरा बेड़ा पार लगाइथे।" इनको उत्तर दीजिये कि जाली दस्तावेजें बनवाइये और झूठे दावे चलाकर उनकी डिगरी करा लीजिये। थोड़े ही दिनों में आपका क्लेश निवारण हो जायगा। यह देखिये एक सज्जन और कहते हैं-लसकी सयानी हो गयी है, जहाँ जाता हूँ लोग दायजकी गठरी माँगते हैं, यहाँ पेटकीरोटियोंका भी ठिकाना नहीं किसी तरह भलमनसी निमा रहा हूँ, चारों ओर निन्दा हो रही है, जो आशा हो उसका