पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/१९४

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प्रेम-पूर्णिमा पालन करूँ।" इन्हें लिखिये कन्याका निकाह किसी बुड्ढे खुर्राट सेठसे कर दीजिए। बह दायज लेनेकी जगह कुछ उल्टे और दे जायगा। अब आप समझ गये होंगे कि ऐसे जिज्ञासुओंको किस ढगसे उत्तर देनेकी आवश्यकता है। उत्तर सक्षिप्त होना चाहिये, बहुत टीका टिप्पणी व्यर्थ होती है। अभी कुछ दिनोंतक आपको यह काम कठिन जान पडेगा , पर आप चतुर मनुष्य हैं, शौन आपको इस कामका अभ्यास हो जायगा। तब आपको मालूम छोमा कि इससे सहज और कोई उपाय नहीं है। आपके द्वारा सैकड़ों दारुण दुःख भोगनेवालोका कल्याण होगा और यह आजन्म आपका यश गायेगे। [४] मुझे यहाँ रहते एक महीने से अधिक हो गया, पर अबतक मुझपर यह रहस्य न खुला कि यह सुन्दरी कौन है? मैं किसका सेवक हूँ ! इसके पास इतना अस धन, ऐसी ऐसी विलासकी सामग्रियों कहॉसे आती हैं ! जिवर देखता था, ऐश्वर्य हीका आडम्बर दिखाई देता था। मेरे आश्चर्य की सीमा न थी मानों किसी तिलिस्म में फंसा हूँ। इन जिज्ञासुओका इस रमणोसे क्या सम्बन्ध है, यह भेद भी न खुरता था। मुझे नित्य उससे साधान होता था, उसके सम्मुख आते ही में बचेत-सा हो जाता था। उसकी चितवनों में एक प्रबल आकर्पण था जो मेरे प्राणों को खींच लिया करता था। मैं क्य-शून्य इ. जाता, केवल छिपी हुई आँखोंसे उसे देखा करता था ! पर मुझे उसके मृदुल मुस्कान और रसमयी आलोचनाओ तथा नधुर, काव्यमय भावों में प्रेमा.