पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/२००

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प्रेम-पूर्णिमा २०० सकोगे। मेरा झोपड़ा तुम्हारे सामने था, मैं भी कभी कभी यहाँ आया करता था पर तुमने मुझसे मिलनेकी आवश्य- कतान समझी। यदि पहले ही दिन तुम मुझपे मिलते तो महलों मनुष्योंका सर्वनाश करनेके अपराधसे बच जाते। निसन्देह तुम्हारे कर्मोका फल था जिसने आज तुम्हारी रक्षा की। अगर यह पिशाचिनी एक बार तुमसे प्रेमालिंगन कर लेती तो फिर तुम कहीके न रहते । तुम उसी दम उसके अजा. यब खानेमें भेज दिये जाते। वह जिसपर रीझती है उसकी यही गत बनाती है। यही उसका प्रेम है। चलो जरा इस अजायब खानेकी सैर करो तब तुम समझोगे कि आज तुम किस आफत से बचे। यह कहकर महात्माजीने दीवारमें एक बटन दबाया । तुरन्त एक दरवाजा मिकल आया । यह नीचे उतरनेकी सीढ़ी थी। महात्मा उसमें घुसे और मुझे भी बुलाया। घोर अन्धकारमें कई कदम उतरनेके बाद एक बडा कमरा नजर आया। उसमें एक दीपक टिमटिमा रहा था। वहाँ मैंने जो घोर वोभत्स और हृदय विदारक दृश्य देखे उसका स्मरण करके आज भी रोगटे खड़े हो जाते हैं। इंटैलीके अमरकवि डैन्टी' ने नर्क का जो दृश्य दिखाया है उससे कही भयावह, रोमाञ्चकारी तथा नारकीय दृश्य मेरी आँखोंके सामने उपस्थित था , सैकड़ों विचित्र देहधारी नाना प्रकारकी अशुद्धताओंमे लिपटे हुए, भूमि पर पड़े कराह रहे थे। उनके शरीर मनुष्योके से थे, लेकिन चेहरोंका रूपान्तर हो गया था। कोई कुत्ते से मिलता था, कोई गीदड़से, कोई बन बिलावसे, कोई सॉपसे । एक स्थानपर एक मोटा स्थूल मनुष्य, .