पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/२११

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२११ महातीर्थ स्त्री थी। सुखदाने डरते-डरते कहा-आज बड़े हकीम साहयको बुला लेते, शायद उनकी दवासे फायदा हो। इन्द्रमणिने काली घटाओंकी ओर देखकर रुखाईसे जवाब दिया-बड़े हकीम नही यदि धन्वन्तरि भी आवे तो भी उसे कोई फायदा न होगा। सुखदाने कहा-तो क्या अब किसीकी दवा न होगी? इन्द्रमणि-बस; इसकी एक ही दवा है और अलभ्य है। सुखदा--तुम्हे तो बस वही धुन सवार है। क्या बुढ़िया आकर अमृत पिला देगी? इन्द्रमणि-वह तुम्हारे लिये चाहे विष हो पर लड़केके लिये अमृत ही होगी। सुखदा-मै नहीं समझती कि ईश्वरेच्छा उसके अधीन है। इन्द्रमणि-यदि नहीं समझती हो और अबतक नही समझी तो रोओगी। बच्चेसे हाथ धोना पड़ेगा। सुखदा---पुप भी रहो; क्या अशुभ में इसे निकालते हो। यदि ऐसी ही जली कटी सुनाना है तो बाहर चले जाओ। इन्द्रमणि-तो मैं जाता हूँ। पर याद रखो, यह हत्या तुम्हारी ही गर्दनपर होगी। यदि लड़केको तन्दुरुस्त देखना चाहती हो तो उसी दाईके पास जाओ, उससे विनती और प्रार्थना करोक्षमा मांगों। तुम्हारे बच्चेकी जान उसीकी दयाके अधीन है। सुखदाने कुछ उत्तर नही दिया। उसकी ऑखोंसे ऑसू जारी थे। इन्द्रमणिने पूछा-क्या मर्जी है, जाऊँ उसे बुला लाऊँ।