पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/२१६

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रेम पूर्णिमा रेलवाले क्यो देर कर रहे हैं। झूठमूठ इधर-उधर दौड़ते-फिरते हैं । यह नहीं कि झटपट माडी खोल दें। यात्रियोंकी जान में जान आये । एकाएक उसने इन्द्रमणिको बाइसिकिल लिये प्लेटफार्मपर आते देखा । उनका चेहरा उतरा हुआ था और कपडे पसीनोंसे तर थे । वह गाड़ियोंमे झॉकने लगे। कैलासी केवल यह जतानेके लिथे कि मै भी यात्रा करने जा रही हूँ, गाड़ीसे बाहर निकल आयी। इन्द्रमणि उसे देखते ही लपककर करीब आ गये और बोले- क्यो कैलासी, तुम भी यात्राको चली ? कैलासीने सगर्व दीनतासे उत्तर दिया-~-हॉ यहाँ क्या करूँ, जिन्दगीका कोई ठिकाना नही, मालूम नही कब ऑखे बन्द हो जायें । परमात्माके यहॉ मुंह दिखानेका भी तो कोई उपाय होना चाहिये । रुद्र बाबू अच्छी तरह हैं । इन्द्रमणि -अब तो जाही रही हो । रुद्रका हाल पूछकर क्या करोगी? उसे आशीर्वाद देती रहना। कैलासीको छाती धडकने लगी। घबराकर बोली-उनका जी अच्छा नहीं है क्या ? इन्द्रमणि---वह तो उसी दिनसे बीमार है जिस दिन तुम वहासे निकली। दो हफ्तेतक उसने अन्ना-अन्नाकी रट लगाई। अब एक हफ्तेसे खॉसी और बुखारमें पड़ा है सारी दवाइयाँ करके हार गया, कुछ फायदा नहीं हुआ। मैने सोचा था कि चलकर तुम्हारी अनुनय-विनय करके लिवा लाऊँगा। क्या जाने तुम्हे देखकर उसकी तबीयत संभल जाय । पर तुम्हारे घरपर आया तो मालूम हुआ कि तुम यात्रा करने जा रही हो। अब किस मुँहमे चलनेको कहूँ। तुम्हारे साथ सलूक ही कौन सा