पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/२१७

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२१७ महातीर्थ अच्छा किया था जो इतना साहस करूँ। फिर पुण्य कार्य में विघ्न डालनेका भी डर है। जाओ उसका ईश्वर मालिक है। आयु शेष है तो बच ही जायगा अन्यथा ईश्वरी गतिमें किसीका क्या वश । वैलासीकी ऑखोंके सामने अन्धेरा छा गया। सामनेकी चीजे तैरती हुई मालूम होने लगी। हृदय भावी अशुभकी आशङ्का से दहल गया । हृदयसे निकल पडा- 'या ईश्वर, मेरे रुद्रका बाल बॉका न हो।' प्रेमसे गला भर आया। विचार किया कि मैं कैसी कठोर हृदया हूँ। प्यारा बच्चा रो रोकर हल- कान हो गया और मैं उसे देखनेतक नही गयी। सुखदाका स्वभाव अच्छा नहीं न सही, किन्तु रुद्रने मेरा क्या बिगाड़ा था कि मैने मौका बदला बेटेसे लिया। ईश्वर मेरा अपराध क्षमा करो। प्यारा रुद्र मेरे लिये हुडक रहा है। (इस खयालसे कैलासीका कलेजा मसोस उठा था और ऑखोंमें ऑसू बह निकले) मुझे क्या मालूम था कि उसे मुझसे इतना प्रेम है। नही मालूम बच्चेकी क्या दशा है। भयातुर हो बोली-दूध वो पीते हैं न? . इन्द्रमणि-तुम दूध पीनेको कहती हो, उसने दो दिनसे ऑस्खेतकान खोली। कैलासी-या मेरे परमात्मा। अरे कुलो। कुली! बेटा, आकर मेरा सामान गाडीसे उतार दे। अब मुझे तीरथ जाना मही सूझता। हाँ बेटा, जल्दी कर, बाबूजी देखो कोई एक्का हो ते ठीक कर लो। एका रवाना हुआ। सामने सड़कपर बग्घियाँ खड़ी थीं। घोड़ा धीरे-धीरे चल रहा था। कैलासी बार-बार असलाती थी