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ईश्वरीय न्याय
 

क्यों नहीं खा जाता जो मुंशीको खा जायगा! मैंने तो सत्यवादियों को सदा दुःख झेलते ही देखा है। मैंने जो कुछ किया है उसका सुख लूटूँगा! तुम्हारे मनमें जो आवे करो।

प्रातःकाल दफ्तर खुला तो कागजात सब गायब थे। मुन्शी छाक्कलाल बौखलायेसे घरमें गये और मालकिनसे पूछा—'क्या कागजात आपने उठवा लिये हैं?' भानुकुॅवरिने कहा—'मुझे क्या खबर जहाँ आपने रखे होंगे वही होंगे।' फिर वो सारे घरमें खलबली पड़ गयी। पहरेदारोंपर मार पड़ने लगी। भानुकुॅवरिको तुरन्त मुन्शी सत्यनारायणपर सन्देह हुआ। मगर उनको समझमें छक्कनलालकी सहायताके बिना यह काम होना असम्भव था। पुलिसमें रपट हुई। एक ओझा नाम निकालनेके लिये बुलाया गया। मौलवी साहबने कुर्रा फेंका। ओझाने बताया, यह किसी पुराने बैरीका काम है। मौलवी साहबने फर्माया, किसीके घर भेदियेने यह हरकत की है। शामतक यही दौड़-धूप रही। फिर यह सलाह होने लगी कि इन कागजातके बगैर मुकद्दमा कैसे चलेगा। पक्ष तो पहले ही निर्बल था। जो कुछ बल था वह इसी बही खातेका था। अब तो वे सबूत भी हायसे गये। दावेमें कुछ जान ही न रही। मगर भानुकुॅवरिने कहा—'बलासे हार जायँगे। हमारी चीज कोई छीन ले तो हमारा धर्म है कि उससे यथाशक्ति लड़ें। हारकर बैठ रहना कायरोंका काम है।' सेठजी (वकील) को इस दुर्घटनाका समाचार मिला तो उन्होंने भी यही कहा कि अब दावेमें जरा भी जान नहीं है। केवल अनुमान और तर्कका भरोसा है। अदालतने माना तो माना, नहीं तो हार माननी पड़ेगी। पर भानुकुँवरिने एक न मानी। लखनऊ और