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प्रेम पूर्णिमा
२०
 

इलाहाबादसे दो होशियार बैरिस्टर बुलवाये। मुकद्दमा शुरू हो गया।

सारे शहरमें इस मुकद्दमेकी धूम थी। कितने ही रईसोंको भानुकुॅवरिने साक्षी बनाया था। मुकद्दमा शुरू होनेके समय हजारों आदमियोंकी भीड़ हो जाती थी। लोगोंके इस खिंचावका मुख्य कारण यह था कि भानुकुॅवरि एक परदेकी आड़में बैठी हुई अदालतकी कार्रवाई देखा करती थी। क्योंकि उसे अब अपने नौकरोंपर जरा भी विश्वास न था।

बादीके बैरिस्टरने एक बड़ी मार्मिक वक्तृता दी। उसने सत्यनारायणकी पूर्वावस्थाका खूब अच्छा चित्र खीचा। उसने दिखलाया कि वे कैसे स्वामिभक्त, कैसे कार्य-कुशल, कैसे धर्म- शील थे और स्वर्गवासी पण्डित भृगुदत्तका उनपर पूर्ण विश्वास हो जाना किस तरह स्वाभाविक था। इसके बाद उसने सिद्ध किया कि मुन्शी सत्यनारायणकी आर्थिक अवस्था कभी ऐसी न थी कि वे इतना धन संचय कर सकते। अन्तमें उसने मुन्शीजी- की स्वार्थपरता, कूटनीति, निर्दयता और विश्वासघातकताका ऐसा घृणोत्पादक चित्र खींचा कि लोग मुन्शीजीको गालियाँ देने लगे। इसके साथ ही उन्होंने पण्डितजीके अनाथ बालकोंकी दशाका बड़ा ही करुणोत्पादक वर्णन किया, कैसे शोक और लज्जाकी बात है कि ऐसा चरित्रवान, ऐसा नीतिकुशल मनुष्य इतना गिर जाय कि अपने ही स्वामीके अनाथ बालकोंकी गर्दनपर छुरी चलानेमें संकोच न करे। मानव पतनका ऐसा करुण ऐसा हृदय- विदारक उदाहरण मिलना कठिन है। इस कुटिल कार्य के परिणाम की दृष्टि से इस मनुष्यके पूर्व परिचित सद्गुणोंका गौरव लुप्त हो