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प्रेम-पूर्णिमा
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चुकानेका कोई तकाजा न करके वह जायदाद ही मॉगी जाती है। यदि हिसाबके कागजात दिखलाये जाय तो वे साफ बता देगे कि मैं सारा ऋण दे चुका। हमारे मित्रने कहा है कि ऐसी अवस्थामें बहियोंका गुम हो जाना अदालतके लिए एक सबूत होना चाहिये। मै भी उनकी उक्तिका समर्थन करता हूँ। यदि मै आपसे ऋण लेकर अपना विवाह करूँ तो क्या आप मुझसे मेरी नवविवाहिता वधूको छीन लेंगे?

हमारे सुयोग्य मित्रने हमारे ऊपर अनाथोंके साथ दगा करने का दोष लगाया है। अगर मुन्शी सत्यनारायणकी नीयत खराब होती तो उनके लिये अबसे अच्छा अवसर वह था जब पण्डित भृगुदत्तका स्वर्गवास हुआ। इतने विलम्बकी क्या जरूरत थी। यदि आप शेरको फँसाकर उसके बच्चेको उसी वक्त नहीं पकड़ लेते, उसे बढने और सबल होनेका अवसर देते है लो मैं आपको बुद्धिमान न कहूॅगा। यथार्थ बात यह है कि मुन्शी सत्यनारायण ने नमकका जो कुछ हक था वह पूरा कर दिया। आठ वर्ष तक तन-मनसे स्वामी-संतानकी सेवा की। आज उन्हें अपनी साधुताका जो फल मिल रहा है वह बहुत ही दुःखजनक और हृदय- विदारक है। इसमें भानुकुँवरिका कोई दोष नहीं। वे एक गुण- सम्पन्न महिला हैं। मगर अपनी जातिके अवगुण उनमें भी विद्यमान हैं। ईमानदार मनुष्य स्वभावतः स्पश्वभाषी होता है, उसे अपनी बातोंमें नमक-मिर्च लगानेको जरूरत नहीं होती। यही कारण है कि मुन्शीजीके मूदुमाषी मातहतोंको उनपर आक्षेप करनेंका मौंका मिल गया। इस दावेकी जड़ केवल इतनी हैं और कुछ नहीं। भानुकुँवरि यहाँ उपस्थित हैं। क्या वे कह