पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/३२

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था तथापि प्रेम-पूर्णिमा -समयपर जज साहबने इजलासको सुशोभित किया। विस्तृत न्याय-भवनमें सन्नाटा छा गया। अहलमदने सन्दूकसे तजवीज निकाली! लोग उत्सुक होकर एक एक कदम और आगे खिसक गपे। जजने फैसला सुनाया-मुद्दईका दावा खारिज ! दोनों पक्ष अपना-अपना खर्च सह ले । यद्यपि फैसला लोगोंके अनुमानके अनुसार जजके मुँ हसे उसे सुनकर लोगोंमें हलचल सी पड़ गयी। उदासीन भावसे इस फैसलेपर आलोचनाये करते हुए लोग धीरे-धीरे कमरे से निकलने लगे। यकाएक भानुकुवरि घूघट निकाले इजलासपर आकर खड़ी हो गयी । जानेवाले लौट पड़े। जो बाहर निकल गये थे, दौड़कर आ गये और कौतूहलपूर्वक भानुकु वरिकी तरफ वाकने लगे। भानुकुवरिने कम्पित स्वरमें जनसे कहा- सरकार, यदि हुक्म दे तो मैं मुन्शीजीसे कुछ पूछ । यद्यपि यह बात नियमके विरुद्ध थी तथापि जजने दयापूर्वक आशा दे दी। सब भानुकुवरिने सत्यनारायणकी तरफ देखकर कहा- लालाजी ! सरकारने तुम्हारी डिग्री तो कर ही दी, गॉव तुम्हें मुबारक रहे, भगर ईमान आदमीका सब कुछ है। ईमानसे कह दो, गॉव किसका है? हजारों आदमी यह प्रश्न सुनकर कौतुहलसे सत्यनारायणकी तरफ देखने लगे । मुन्शीजी विचारसागरमें डूब मये । हृदयक्षेत्र में संकल्प और विकल्पमें घोर संग्राम होने लगा । इजारों मनुष्यों-