पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मम पर्शिमा रान्त बह गाँव उन्हीके नाम हिन्बा कर दिया। सुन्धीजीने भी उसे अपने अधिकारमें रखना उचित न समय कृण्मार्षमा कर दिया। अब इसकी आमदनी दीन दुनियों और विद्यार्थियोंकी सहायतामें खर्च होती है। . शंखनाद [१] भानु चौधरी अपने गाँवके मुखिया थे। गॉवमें उनका बड़ा मान था । दारोगाजी उन्हे टाट बिना जमीनपर बैठने न देते। मुखिया साहबकी ऐसी धाक बँधी हुई थी कि उनकी मर्जी बिना गॉवमें एक पता भी नहीं हिल सकता था। कोई घटना चाहे वह सास बहूका विवाद हो, चाहे भेड़ या खेतका झाड़ा, चौधरी साइबके शासनाधिकारको पूर्णरूपसे सचेत करनेके लिये काफी थी। वह तुरन्त घटनास्थलपर जा पहुँचते । सहकीकात होने लगती, गवाह और सबूतके सिवा किसी अभियोगको सफलता सहित चलानेमे जिन बातोंकी जरूरत झेती है, उन सबपर विचार होता और चौधरीजीके दरसे फैसला हो जाता । किसीको अदा- लवतक जानेकी जरूरत न पड़ती। हाँ, इस कष्टके लिये चौधरी साहव कुछ फीस जरूर ले लेते थे। यदि किसी अक्सरपर फीस