पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/३६

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प्रेम-पूर्णिमा शिक्षा और उपदेश, स्नेह और विनय किसीका उसपर कुछ भी असर न हुआ। हॉ, भावजे अभीतक उसकी ओरसे निराश न हुई थीं। वह अभीतक उसे कडवी दवाइयाँ पिलाये जाती थी। पर आलस्य वह राजरोग है जिसका रोगी कभी नही समलता। ऐसा कोई बिरला ही दिन जाता होगा कि बाके गुमानको भावजों- के कटुवाक्य न सुनने पडते हों। यह विषैले थर कभी-कभी उसके कठोर हृदय में चुभ भी जाते, किन्तु यह बाव रात भरसे अधिक न रहता। भोर होते ही थकानके साथ ही यह पीड़ा भी शान्त हो जाती। तडका हुआ, उसने हाथ मुंह धोया, बंसो उठायी और तालाबकी ओर चल खड़ा दुआ। भावले फूलोंकी वर्षा किया करतीं, बूढ़े चौधरी पैंतरे बदलते रहते और भाई लोग तीखी निगाइसे देखा करते, पर अपनी धुनका पूरा बाका गुमान उन लोगोके बीचमेंसे इस तरह अकड़ता चला जाता जैसे कोई मस्त हाथी कुत्तोंके बीचसे निकल जाता है। उसे सुमार्ग पर लानेके लिये क्या क्या उपाय नहीं किये। बाप समझाता, बेटा ऐसी राह चलो जिसमें तुम्हें भी चार पैसे मिले और गृहस्थीका भी निर्वाह हो । भाइयोंके भरोसे कबतक रहोगे, मै पका आम हूँ। आज टपक पड़, या कल । फिर तुम्हारा निबाह कैसे होगा। भाई बात भी न पूछेगे, भावजोंका रंग देखही रहे हो। तुम्हारे भी तो लड़के बाले हैं। उनका भार कैसे संभालोगे? खेती में जी न लगे, कहो कानिस्टेबलीमें भरती करा दूं। बॉका गुमान खड़ा- खड़ा यह सब सुनता, लेकिन पत्थरका देवता था-कमीन पसीजता । इन महाशयके अत्याचारका दण्ड उनकी स्त्री बेचारीको भोगना पड़ता था, कड़ी मेहनत के घरमें जितने काम. होते वह