पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/३८

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प्रेम-पूर्णिमा ३४ ऐसे वरून तो शायद मुझे अपने व्याइमें भी न मिले होंगे। मीठे शानके हृदयमें भी कुछ ऐसे ही विचार उठते थे। अन्तमें जब यह जलन न सही गयी और अमि भड़की तो एक दिन कानूनदाँ बितानकी पत्नी गुमानके सारे कपड़े उठा लायी और उनपर मिट्टी- का तेल उडेल कर आग लगा दी। ज्वाला उठी। सारे कपड़े देखते-देखते जलकर राख हो गये। गुमान रोते थे। दोनों भाई खड़े तमाशा देखते थे। बूढे चौधरीने यह दृश्य देखा और सिर पीट लिया । यह द्वेषाग्नि है । घरको जलाकर-तब बुझेगी। [३] यह ज्वाला तो थोड़ी देरमें शान्त हो गयी, परन्तु हृदयकी आग ज्यों की-त्यों दहकती रही। अन्तमे एक दिन बूढ़े चौधरीने घरके सब मेम्बरोंको एकत्रित किया और इस गूढ़ विषयपर विचार करने लगे कि बेड़ा कैसे पार हो। बितानसे बोले- बेटा, तुमने आज देखा, बात-की-बातमें सैकड़ों रुपयोंपर पानी फिर गया; अब इस तरह निर्वाह होना असम्भव है। तुम समझदार हो, मुकदमे मामले करते हो, कोई ऐसी राह निकालो कि घर डूबनेसे बचे। मै वो यह चाहता था कि जबतक चोला रहे सबको समेटे रहूँ, मगर भगवानके मनमें कुछ और ही है। बिवानकी नीतिकुशलता अपनी चतुर सहगामिनीके सामने लोप हो जाती थी। वह अभी इसका उत्तर सोच ही रहे थे कि श्रीमतीजी बोल उठीं-दादाजी! अब समझाने बुझानेसे काम नचलेगा. सहते सहते हमारा कलेजा पक गया। बेटेकी जितनी पीर बाफ्को होगी, भाइयोंको उत्तनी क्या, उसकी आधी मी नहीं