पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

शंखनाद हो सकती। मैं तो साफ कहती हूँ, गुमानका तुम्हारी कमाईमें हक है, उन्हें कञ्चनके कौर खिलाओ और चाँदीके हिंडोलेमें झुलाओ। हममें न इतना बूता है न इतना कलेजा, हम अपनी झोपडी अलग बना लेंगे, हाँ जो कुछ हमारा हो वह हमको मिलना चाहिये। बॉट-बखस कर दीजिये। बलासे चार आदमी हँसेगे. अब कहाँतक दुनियाकी लाज ढोयें । नीतिज्ञ बितानपर इस प्रबल वक्त ताका असर हुआ, वह उनके विकसित और प्रमुदित चेहरेसे झलक रहा था । उनमें स्वयं इतना साहस न था कि इस प्रस्तावको इतनी स्पष्टतासे व्यक्त कर सकते । नीतिज्ञ महाशय गम्भीरतासे बोले-जायदाद मुश्तरका, मन्कूला या गैर मन्कूला, आपके हीन हयात तकसीम की जा सकती है, इसकी नजीरें मौजूद हैं। जमींदारको साकितुल मिल्कि- यत करनेका कोई इस्तहकाक नहीं है। अब मन्दबुद्धि शानकी बारी आयी, पर बेचारा किसान, बैलोंके पीछे ऑखे बन्द करके चलनेवाला, ऐसे गूढ़ विषयपर कैसे मुंह खोलता। दुविधामें पड़ा हुआ था। तब उसकी सत्यवक्ता धर्मपत्नीने अपनी जेठानीका अनुसरण कर यह कठिन कार्य सम्पन किया। बोली-बड़ी बहिनने जो कुछ कहा है उसके सिवा और दूसरा उपाय नहीं है । कोई तो कलेजा तोड- तोड़कर कमावे, मगर पैसे-पैसेको तरसे, तन ढाकनेको वस्त्र तक न मिलें और कोई सुखकी नीद सोवे और हाय बढ़ा-बढ़ाके खाय, ऐसी अन्धेर नगरीमें अब हमारा निबाह न होगा। शान चौधरीने भी इस प्रस्तावका मुक्तकण्ठसे अनुमोदन किया. अब बूढ़े चौधरी गुमानसे बोले- क्यों बेटा, तुम्हें भी यही