पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/४०

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प्रेम-पूर्णिमा ३६ मजूर है ? अभी कुछ नही बिगडा है। यह आग अब भी बुझ सकती है। काम सबका प्यारा होता है, चाम किसीका प्यारा नहीं होता, बोलो क्या बोलते हो? कुछ काम-धन्धा करोगे या अभी ऑखे नही खुली। गुमानमे धैर्यकी कमी नही थी। बातोंको इस कान सुन उस कान उड़ा देना उसका नित्यकर्म था। किन्तु भाइयोंकी इस 'जन मुरीदी' पर उसे क्रोध आ गया। बोला-भाइयोंकी जो इच्छा है वही मेरे मनमे भी लगी हुई है, मै भी इस जजालसे अब भागना चाहता हूँ। मुझसे न मजूरी हुई, न होगी। जिसके भाग्यमें चक्की पीसना बदा हो, वह पीसे। मेरे भाग्यमें तो चैन करना लिखा हुआ है, मै क्यों अपना सिर ओखलीमे दूं। मैं तो किसीसे काम करनेको नहीं कहता । आप लोग क्यों मेरे पीछे पड़े हुए हैं। अपनी-अपनी फिक कीजिये, मुझे आध सेर आटेकी कमी नही है। इस तरहकी सभाये कितनी ही बार हो चुकी थी, परन्तु इस देशकी सामाजिक और राजनैतिक सभाओंकी तरह इनसे भी कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता था। दो-तीन दिन गुमानने घरपर खाना नहीं खाया; जतनसिंह गकुर शौकीन आदमी थे, उन्हींकी चौपालमें पड़ा रहता। अन्तमें बूढ़े चौधरी गये और मनाके लाये, अब फिर वह पुरानी गाडी अड़ती, मचलती, हिलती, चलने लगी। [४] पाडेके घरके चूहोंकी तरह चौधरीके घरके बच्चे भी सयाने