पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/४६

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प्रेम-पूर्णिमा खुल गया यो। बहुतेरे वही जाकर जमे । जहॉ जिसको सुभीता हुआ वह उधर ही ना निकला। [२] सन्ध्याका समय था । जादोराय थकामॉदा आकर बैठ गया और स्त्रीसे उदास होकर बोला-'दरखास्त नामंजूर हो गयी।" यह कहते कहते वह ऑगनमे जमीनपर लेट गया । उसका मुख पीला पड रहा था और ऑते सिकुड़ी जा रही थीं। आज दो दिनसे उसने दानेकी सूरत नहीं देखी। घरमें जो कुछ विभूति यौं। । भइने, कपड़े, बरतन, भाड़े सब पेटमें समा गये। गॉवका साहूकार मी पतिव्रता स्त्रियोंकी भॉति आँखे चुराने लगा । केवल तकावीका सास था, उसीके लिये दरखास्त दी थी, लेकिन आज वह भी नामन्जूर हो गयी, आशाका झिलमिलाता हुआ दीपक बुझ गया। देवकीने पतिको करुणाष्टिमे देखा। उचकी ऑखोंमें ऑस् उमड़ आये। पति दिनभरका थका माँदा पर भाया है। उसे क्या खिलावे लब्बाके मारे वह हाथ-पैर धोनेके लिये पानी भी न लायी। जब हाथ-पैर धोकर आशाभरी चितवनसे वह उसकी ओर देखेगा तब वह उसे क्या खानेको देगी? उसने आप कई दिनसे दानेकी सूरत नही देखी थी। लेकिन इस समय उसे जो दुःख हुआ वह क्षुधातुरताके कष्टसे कई गुना अधिक था। स्त्री घरकी लक्ष्मी है। घरके प्राणियोंको खिलाना पिलाना वह अपना कर्तव्य समझती है। और चाहे यह उसका अन्याय ही क्यों न हो, लेकिन अपनी दीन हीन दशाफर जो मानसिक वेदना उसे होली है वह पुरुषोको नहीं हो सकती।