४३ खून सफेद इठात् उसका बच्चा साधो नीदसे चौंका और मिठाईके लालचमें आकर वह बापसे लिपट गया। इस बच्चेने आज प्रातः काल चनेकी रोटीका एक टुकडा खाया था और तबसे कई बार उठा और कईबार रोते रोते सो गया। चार वर्षका नादान बच्चा, उसे वर्षा और मिठाइयोंमें कोई सम्बन्ध नहीं दिखाई देता था। जादोरायने उसे गोद में उठा लिया और उसकी ओर दःख भरी दृष्टि से देखा । गर्दन झुक गयी और हृदय-पीड़ा ऑखोंमे न समा सकी। ३] दूसरे दिन यह परिवार भी घरसे बाहर निकला। जिस तरह पुरुषके चित्तसे अभिमान और स्त्रीकी आँखसे लज्जा नहीं निकलती उसी तरह अपनी मेहनतसे रोटी कमानेवाला किसान भी मजदूरी की खोजमें घरसे बाहर नहीं निकलता। लेकिन हा पापी पेट, तू सब कुछ कर सकता है ! मान और अभिमान, ग्लानि और लजा ये सब चमकते हुए तारे तेरी काली घाओकी ओटमे छिप जाते हैं। प्रमातका समय था। ये दोनों विपत्तिके सताये घरसे निकले। आदोरायने लड़केको पीठ पर लिया । देवकीने फटेपुराने कपड़ौकी वह गठरी सिरपर रखी, जिसपर विपत्तिको भी तरस आता । दोनों की आँखें आँसुसि भरी थी। देवकी रोती थी। जादोराय चुप- चाप था। गाँवके दो चार आदमियोंसे भेंट भी हुई, किन्तु किसीने इतना भी न पूछा कि कहाँ आते हो ? किसीके हृदय में सहानुभूति- कावासन था।