पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/५०

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'प्रेम-पूर्णिमा [ ५ ] पादरी मोहनदास खेमेसे बाहर निकले तो साधो उन्हें खड़ा दिखायी दिया। उसकी सूरतपर उन्हें तरस आ गया। प्रेमकी नर्दी उमड आयी। बच्चेको गोदमें लेकर खेमे में एक गद्देदार कोंचपर बैठा दिया और तब उसे बिस्कुट और केले खानेको दिये। लड़केने अपनी जिन्दगीमें इन स्वादिष्ट चीजोंको कभी न देखा था। बुखारको बेचैन करनेवाली भूख अलग मार रही थी। उसने खूब मनभर खाया और तब कृतज्ञ नेत्रोंसे देखते हुए पादरी साहबके पास जाकर बोला-तुम हमको रोज ऐसी चीजें दिलाओगे! पादरी साहब इस भोलेपनपर मुस्कराके बोले, मेरे पास इससे भी अच्छी-अच्छी चीजें हैं। इसपर साधोरायने कहा-अब मै रोज तुम्हारे पास आऊँगा। माँ के पास ऐसी अच्छी चीजे को यह तो मुझे चनेकी रोटियाँ खिलाती है। उधर देवकीने रोटियों बनायीं और साधोको पुकारने लगी। साधोने माके पास जाकर कहा-मुझे साहबने अच्छी-अच्छी चीज खानेको दी हैं। साहब बड़े अच्छे हैं। देवकीने कहा-मैंने तुम्हारे लिए नरम नरम रोटियाँ बनाई हैं, आओ तुम्हें खिलाऊँ। साधो बोल्प-'अब मैं न खाऊँगा । साहब कहते थे कि मैं तुम्हें रोज अच्छी अच्छी चीजे खिलाऊँगा। मैं अब उनके साथ रहा करूँगा । मॉने समझा कि लड़का इसी कर रहा है। उसे अतीसे लगाकर बोलो-क्यों बेग! हमको भूल जाओगे ? देखो, मैं तुम्हें कितना प्यार करती हूँ।