पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/५१

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४७ खून सफेद साधो तुतलाकर बोला-'तुम तो मुझे रोज चनेकी रोटियाँ दिया करती हो, तुम्हारे पास तो कुछ नहीं है । साहब मुझे केले और आम खिलायेंगे।', यह कहकर वह फिर खेमेकी ओर भागा और रातको वहीं सो रहा । पादरी मोहनदासका पड़ाव वहाँ तीन दिन रहा। सामो दिनभर उन्हींके पास रहता। साहबने उसे मोठी दवाइयाँ दीं। उसका बुखार जाता रहा । वह भोले भाले किसान यह देखकर साहबको आशीर्वाद देने लगे। लड़का भला चङ्गा हो गया और आरामसे है । साहबको परमात्मा सुखी रखे । उन्होंने बच्चे- की जान रख ली। चौथे दिन रातको ही वहासे पादरी साहबने कूच किया। सुबहको जब देवकी उठी दो साधोका वहाँ पता न था । उसने समझा कहीं टपके दूंडने गया होगा , किन्तु थोड़ी देर देखकर उसने जादोरायसे कहा- लल्लू यहॉ नहीं है।.. उसने भी यही कहा, कही टपके हूँढता होगा। लेकिन जब सूरज निकल आया और काम पर चलनेका वक्त हुआ, तब जादोरायको कुछ संशय हुआ । उसने कहा- तुम यहीं बैठी रहना, मै अभी उसे लिये आता हूँ। जादोने आस-पासके सब बागोंको छान डाल और अन्तमें अब दस मज गये तो निराश लौट आया। साधो न मिला, यह देखकर रेवकी दाईं मारकर रोने लगी। फिर दोनों अपने लालकी तलाशमें निकले । अनेक विचार चित्तमें जाने जाने लगे। देवकीको पूरा विश्वास था कि साहबने उसपर कई मन्त्र बालकर वश में कर लिया। लेकिन जादोको