पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/५२

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प्रेम-पूर्णिमा इस कल्पनाके मान लेने में कुछ सन्देह था। बच्चा इतनी दूर अनजान रास्ते पर अकेले नहीं आ सकता। फिर भी दोनों गाड़ी- के पहियो और घोड़े के टापोंकी निशान देखते चले जाते थे। यहॉतक कि वे एक सड़कपर आ पहुँचे। वहाँ गाढ़ीके बहुतसे निशान थे, उस विशेष लीककी पहचान न हो सकती थी। घोड़े के टायभी एक झाड़ीकी तरफ जाकर गायब हो गये। आशाका सहारा टूट गया। दोपहर हो गयी थी। दोनों धूपके मारे बेचैन और निराशासे पागल हो रहे थे। वही एक वृक्षकी शयामें बैठ गये। देवकी विलाप करने लगी। जादोरायने उसे समझाना शुरू किया। जब जरा धूपकी तेजी कम हुई तो दोनों फिर आगे चले। किन्तु अब आशाकी जगह निराशा साथ थी, घोड़े की टापोके साथ उम्मेदका धुंधला निशान गायब हो गया था। शाम हो गयी। इधर उधर गायों, बैलोंके झुण्ड निर्जीवसे पड़े दिखायी देते थे। यह दोनों दुखिया हिम्मत हारकर एक पेड़के नीचे टिक रहे । उसी वृक्षपर मैनेका एक जोड़ा बसेरा लिये हुए था। उनका नन्हा-सा शावक आज ही एक शिकारीके चंगुल में फंस गया था। दोनों दिनभर उसे खोजते फिरे। इस समय निराश होकर बैठ रहे। देवकी और जादोको अभीतक आशाकी झलक दिखायी देती थी। इसीलिये वे बेचैन थे। तीन दिनतक ये दोनों अपने खोये हुए लालकी तलाश करते रहे। दानेसे भेट नहीं, प्याससे बेचैन होते तो दो चार घूट पानी गलेके नीचे उतार लेते। आशाकी जगह निराशाका सहारा था। दुःख और करुणके सिवाय और कोई वस्तु नहीं। किसी बच्चे के पैर के निशान देखते