पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/५४

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प्रम-पूर्णिमा उसके कटुवास्प और तीव्र आलोचनाकी सारे गाँवमें धाक बँधी हुई है। महीन कपड़े अब उसे अच्छे नही लगते, लेकिन गहनोंके बारेमें वह इतनी उदासीन नहीं है । उनके जीवनका दूसरा भाग इससे कम उज्ज्वल नहीं है। उनकी दो सन्ताने हैं। लड़का माधोसिंह अब खेतीबारीके काममें बापकी मदद करता है। लड़कीका नाम शिवगौरी है। वह भी मोको चक्की पीसनेमें सहायता दिया करती है और खूब गाती है। बर्तन धोना उसे पसन्द नहीं लेकिन चौका लगानेमें निपुरा है। गुड़ियोंके व्याह करनेसे उसका जी कभी नही भरता। आये दिन गुड़ियोंके विवाह होते रहते हैं। हाँ, इनमें किफायतका पूरा ध्यान रहता है। खोये हुए साधोकी याद अभी तक बाकी है। उसकी चर्चा नित्य हुआ करती है और कभी बिना रुलाये नहीं रहती । देवकी कभी-कभी सारे दिन उस लाडले बेटेकी सुधमें अधीर रहा करती है। साझ हो गयी थी। बैल दिन भरके थके-मादे सिर झुकाये चले आते थे। पुजारीने गाकुर द्वारेमें घटा बजाना शुरू किया। आजकल फसलके दिन हैं। रोज पूजा होती है, जादोराय वाटपर बैठे नारियल पी रहे थे। शिवगौरी रास्तेमें खड़ी उन बैलोको कोस रही थी जो उसके भूमिस्थ विशाल भवनका निरादर करके उसे रौंदते चले जाते थे। घड़ियाल और घरटेकी आवाज सुनते ही जादोराय भगवानका चरणामृत लेनेके लिए उठे ही थे कि उन्हें अकस्मात् एक नवयुवक दिखायी पड़ा, जो भूकते हुए कुतो को दुतकारता, बाईसकिलको आगे बढाता हुआ चला आ रहा था। उसने उनके चरणोपर अपना सिर रख दिया । जादोराय ने