पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/५५

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सफेद खून गौरसे देखा और तब दोनों एक दूसरेसे लिपट गये। माधो भौचक होकर बाईसकिलको देखने लगा। शिवगौरी रोती हुई घरमें भागी और देवकीसे बोली-'दादाको साहबने पकड़ लिया है। देवकी घबरायी हुई बाहर आयी। सावो उसे देखते ही उसके पैरोंपर गिर पड़ा। देवकी लड़केको छतीसे लगाकर रोने लगी। गाँवके मर्द, औरतें और बच्चे सम जमा हो गये। मेला-सा लग गया। [७] साधोने अपने मातापितासे कहा-मुझ अमागेसे जो कुछ अपराध हुआ हो उसे क्षमा कीजिये, मैंने अपनी नादानीसे स्वयं बहुत कष्ट उठाये और आप लोगोंको भी दुःख दिया, लेकिन अब मुझे अपनी गोद में लीजिये। देवकीने रोककर कहा-जब तुम हमको छोड़कर भागे थे तो इम लोग तुम्हें तीन दिनतक बे-दाना-पानीके ढूंढते रहे, पर जब निराश हो गये, तब अपने भाग्यको रोककर बैठ रहे। तबसे आजतक कोई ऐसा दिन न गया होगा कि तुम्हारी सुधि न आयी हो । रोते-रोते एक युग बीत गया, अब तुमने खबर ली है। बताओ बेटा ! उस दिन तुम कैसे भागे और कहाँ जाकर रहे ! साधोने लजित होकर उत्तर दिया-माताजी अपना हाल क्या कहूँ, मैं पहर रात रहे आपके पाससे उठकर भागा। पादरी साहबके पड़ावका पता शाम हीको पूछ लिया था। बस पूछता हुआ दोपहरको उनके पास पहुँच गया। साहबने मुझे पहिले समझाया कि अपने घर लौट जाओ, लेकिन जब