पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/५७

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खून सफेद गम्भीरतासे बोले-हिन्दू धर्ममें ऐसा कभी नहीं हुआ है। यों तुम्हारे मॉ-बाप तुम्हे अपने घरमें रख ले, तुम उनके लड़के हो, मगर विरादरी कभी इस काममें शरीक न होगी। बोलो जादो- राय-क्या कहते हो, कुछ तुम्हारे मनकी भी तो सुन लें। जादोराय बड़ी दुविधा में था। एक ओर तो अपने प्यारे बेटेकी प्रीति थी, दूसरी ओर विरादरीका भय मारे डालता था। जिस लड़केके लिए रोते-रोते ऑखे फूट गयी, आज वही सामने खडा आँखोंसे आँसू भरे कहता है, पिताजी। मुझे अपनी गोदमें लीजिये और मैं पत्थरकी तरह अचल खडा हूँ। शोक। इन निर्दयी भाइयोको किस तरह समझाऊँ, क्या करूँ क्या न करूँ। लेकिन मॉकी ममता उमड़ आयी। देवकीसे न रहा गया। उसने अधीर होकर कहा- मै अपने लालको अपने घरमें रचूगी और कलेजेसे लगाऊँगी। इतने दिनोंके बाद मैंने उसे पाया है, अब उसे नहीं छोड़ सकती। जगतसिंह रुष्ट होकर बोले-चाहे विरादरी छूट ही क्यों न बाय? देवकीने भी गरम होकर जवाब दिया--हॉ, चाहे विरादरी छूट ही जाय। लड़केवालोंहीके लिये आदमी विरादरीकी आड़ पकडता है। जब लडका ही न रहा तो भला विरादरी किस काम आवेगी। इसपर कई मकुर लाल-लाल ऑखें निकालकर बोले- ठकुसहन ! विरादरीकी तो खूब मर्यादा करती हो। लड़का चाहे किसी रास्तेपर जाय, लेकिन विरादरी चूतक न करे। ऐसी विरादरी कही और होगी? हम साफ साफ कहे देते हैं कि अगर