पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/५८

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प्रेम-पूर्णिमा यह लड़का तुम्हारे घर में रहा तो विरादरी भी बता देगी कि, यह क्या कर सकती है? जगतसिंह कभी-कभी जादोरायसे रुपये उधार लिया करते थे। मधुर स्वरसे बोले-भाभी । विरादरी यह थोड़े ही कहती है कि तुम लडकेको घरसे निकाल दो। लड़का इतने दिनोंके बाद घर आया है तो हमारे सिर ऑखोंपर रहे। बस, जरा खाने-पीने और छूत छातका बचाव बनारहना चाहिये । बोलो-जादो भाई। अब विरादरीको कहॉतक दबाना चाहते हो? जादोरायने साधोकी तरफ करुणाभरे नेत्रोंसे देखकर कहा-- बेठा । जहाँ तुमने हमारे साथ इतना सलूक किया है वहाँ जगत भाईकी इतनी कही और मान लो? साधोने कुछ तीक्ष्ण शब्दोमें कहा-क्या मान लें? यह कि अपनोंमें गैर बनकर रहूँ, अपमान सहूँ; मिट्टीका घड़ा भी मेरे छूनेसे अशुद्ध हो जाय । न, यह मेरा किया न होगा, मैं इतना निर्लज नहीं। जादोरायको पुत्रकी यह कठोरता अप्रिय मालूम हुई। वे चाहते थे कि इस वक्त विरादरीके लोग जमा हैं, उनके सामने किसी तरह समझौता हो जाय फिर कौन देखता है कि हम उसे किस तरह रखते हैं ! चिढ़कर बोले-इतनी बात तो तुम्हें माननी ही पड़ेगी। साधोराय इस रहस्यको न समझ सका। बापकी इस बातमें उसे निष्ठुरताकी झलक दिखायी पड़ी। बोला--मैं आपका लड़का हूँ। आपके लड़केकी तरह रहूँगा। आपके प्रेम और भक्तिकी प्रेरणा मुझे यहाँतक लायी है। मैं अपने घरमें रहने आवा.