पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/६२

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प्रेम-पूर्णिमा यह उनकी कुलप्रथा थी। यही सब मामले बहुधा मुन्शीजीके सुख चैनमें विघ्न डालते थे। कानून और अदालत तो उन्हें कोई डर न था। इस मैदानमे उनका सामना करना पानीमें मगरसे लड़ना थापरन्तु जब कोई दुष्ट उससे भिड़ जाता, उनकी ईमा- नदारीपर सन्देह करता और उनके मुंहपर बुरा-भला कहनेपर उतारू हो जाता, तब मुन्शीजीके हृदयपर बडी चोट लगती । इस प्रकारकी दुर्घटनायें प्रायः होती रहती थी। हर जगह ऐसे ओछे लोग रहते हैं, जिन्हें दूसरोंको नीचा दिखानेमें ही आनन्द आवा है। ऐसे ही लोगोंका सहारा पाकर कभी-कभी छोटे आदमी मुन्धोजीके मुंह लग जाते थे। नही वो, एक कुजड़िन की इतनी मजाल नहीं थी कि आँगनमें जाकर उन्हें बुरा भला कहे। मुन्धी- जी उसके पुराने गाइक थे, बरसोंतक उससे साग भाजी ली थी। यदि दाम न दिया जाय तो कु जडिनको सन्तोष करना चाहिये था। दाम जल्दी या देरसे मिल ही जाते। परन्तु वह मुंहफट कु जड़िन दोही बरसोंमें घबरा गयी, और उसने लिये एक प्रतिष्ठित आदमीका पानी उतार लिया। झुंझलाकर मुन्शीजी अपनेको मृत्युका कलेवा बनानेपर उतारू हो गये तो इसमें उनका कुछ दोष न था। [२] इसी गाँवमें मूंगा नामकी एक विधवा ब्राह्मणी रहती थी। उसका पति ब्रह्माकी काली पल्टनमें हवलदार था और लड़ाई में वहीं मारा गया। सरकारकी ओरसे उसके अच्छे कामोंक बदले मूंगाको पाँच सौ रपये मिले थे। विधवा स्त्री, जमाना कुछ आने पैसोंके