पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/६३

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गरीबकी हाय नाजुक या, बेचारीने सब रुपये मुन्शी रामसेवकको सौप दिये, और महीने-महीने थोड़ा-थोड़ा उसमेंसे मॉगकर अपना निर्वाह करती रही। मुन्शीजीने यह कतव्य कई वर्षतक तो बड़ो ईमानदारीके साथ पूरा किया। पर जब बूढी होनेपर मी मूंगा नही मरी और मुन्शीजीको यह चिन्ता हुई कि, शायद उसमेंसे आधी रकम भी स्वर्गयात्राके लिये नही छोड़ना चाहती, वो एक दिन उन्होंने कहा-"मूंगा ! तुम्हें मरना है या नहीं? साफ साफ कह दो कि मैं ही अपने मरनेकी फिक्र करूँ।" उस दिन मूंगाको ऑखें खुली, उसको नींद टूटी, बोली-मेरा हिसाब कर दो। हिसाबका चिट्ठा तैयार था। 'अमानत" में अब एक कौड़ी बाकी न थी। मूंगाने बड़ीकलाईसे मुन्शीजीका हाथ पकड़ लिया और कहा-अभी मेरे ढाई सौ रुपये तुमने दबा रखे हैं। मैं एक कौड़ी भी न छोड़ेगी। परन्तु अनाथोंका क्रोध पटाखेकी आवाज है। जिससे बच्चे, डर जाते हैं और असर कुछ नहीं होता । अदालतसे उसका कुछ जोर न था।न लिखा-पढ़ी थी, न हिसाब किताब । हाँ पञ्चायतसे कुछ आसरा था। पञ्चायत बैठी, कई गाँवके लोग इकड़े हुए। मुन्शीजी नीयत और मामलेके साफ थे, उन्हे पश्चोंका क्या डर! समामें खडे होकर पञ्चोंसे कहा- भाहयो! आप सब लोग सत्यपरायण और कुलीन हैं, मैं आप सब साहबोंका दास हूँ, आप सब साहबोंकी उदारता और कृपासे, दया और प्रेमसे, मेरा रोम रोम कृतज्ञ है, और आप लोग सोचते हैं कि मै इस अनाथिनी और विधवा स्त्रीके रुपये हड़प कर गया हूँ?