पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/७३

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प्रम पूर्णिमा भीतरसे उनके कानोंमें आती थी-तेरा लहू पीऊँगी।' आधी रातको नागिन नींदसे चौक पड़ी। वह इन दिनों गर्भवती थी। लाल लाल आँखोंवाली तेज और नोकोले दातों- वाली मूंगा उसकी छातीपर बैठी हुई जान पडती थी। नागिन चीख उठी। बावलीकी तरह ऑगनमें भाग आयी और यकायक धरतीपर चित्त गिर पडी। सारा शरीर पसीने-पसीने हो गया। मुन्शीजी भी उसकी चीख सुनकर चौके, पर डरके मारे ऑखे न खुली। अन्धोंकी तरह दरवाजा टटोलते रहे। बहुत देरके बाद उन्हे दरवाजा मिला। ऑगनमे आये। नागिन जमीनपर पड़ी हाथ पॉव पटक रही थी। उसे उठाकर भीतर लाये, पर रातभर उसने ऑखें न खोली। भोरको अकबक बकने लगी। थोड़ी देरमे स्वर हो आया । बदन लाल तवा सा हो गया । साझ होते होते उसे सन्निपात हो आया और आधी रातके समय जब संसारमें सन्नाटा छाया हुआ था, नागिन इस संसारसे-चल बसो। मूंगाके उरने उसकी जान ली। जबतक मूंगा जीती रही, वह नागिनकी फुफकारसे सदा डरती रही। पगली होनेपर भी उसने कभी नागिनका सामना नहीं किया, पर अपनी जान देकर उसने आज नागिनकी जान ली। भयमें बड़ी शक्ति है। मनुष्य हवामें एक गिरह भी नही लगा सकता, पर इसने हवामें एक संसार रच डाला। रात बीत गयी। दिन चढता आता था, पर गॉवका कोई आदमी तामिचकी लाश उठानेको आता न दिखायी दिया। मुन्शीजी घर घर-घूमे पर कोई न निकला। भला इत्यारेके दर- वाजेपर कौन जाय ! हत्यारेकी लाश कौन उठावे ! इस समय