पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/७९

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प्रेम-पूनिसमा कभी-कभी कटु शब्दोंमें निकल जाती। श्यामा सुनती कृढ़ती और चुपचाप सह लेती। परन्तु उसकी यह सहनसीलता चम्पाके क्रोधको शान्त करने के बदले और बढाती। यहाँ तक कि प्याला लबालब भर गया। हिरन भागनेको राह न पाकर शिकारीकी तरफ लपका। चम्पा और श्यामा समकोण बनानेवाली रेखाओंकी भाति अलग हो गयी। उस दिन एक ही घरमे दो चूल्हे जले, परन्तु भाइयोने दानेकी सूरत न देखा और कलावती सारे दिन रोती रही। २] कई वर्ष बीत गये। दोनो भाई जो किसी समय एक ही, पालथीपर बैठते थे, एक ही थालीमें खाते थे और एक ही छातीसे दूध पीते थे, उन्हे अब एक घरमे, एक गावमें रहना कठिन हो गया। परन्तु कुलकी साखमें बट्टा न लगे, इसलिये ईर्ष्या और द्वधकी धधको हुई आगको राखके नीचे दबानेकी व्यर्थ चेष्टा की जाती थी। उन लोगोंमें अब भातृ स्नेह न था। केवल भाईके नामकी लाज थी। मा अब भी जोवित थी, पर दोनों बेटोका। वैमनस्य देखकर ऑसू बहाया करती । हृदयमे प्रेम था, पर नेत्रोंमे अभिमान न था। कुसुम वही था, परन्तु वह छटा न थी। दोनों भाई जब लड़के थे, तब एकको रोते देख दूसरा भी रोने लगता था, तब वह नादान, समझ और भोले थे। आज एकको रोते हुए देख दूसरा हॅसता और तालियाँ बजावा । अब यह समझदार और बुद्धिमान हो गये थे। जब उन्हे अपने परायेकी पहचान न थी, उस समय यदि