पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/८६

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बेटीका धन कितना अभिमान था, हृदयमें कितनी उमङ्ग और कितना उत्साह ! परन्तु आज, आह । आज नयनों में लजा है और हृदयमें शोक सन्ताप । उसने पृथ्वीकी ओर देखकर कातर स्वरमें कहा- हे नारायण । क्या ऐसे पुत्रोंको मेरी हो कोखमें जन्म लेना था! बेटीका धन- [१] बेतवा नदी दो ऊँचे करारोंके बीच इस तरह मुंह छिपाये हुए थी जैसे निर्बल हृदयोंमें साहस और उत्साहकी मध्यम ज्योति छिपी रहती है। इसके एक करारपर एक छोटा-सा गॉव बसा है जो अपने भन्न जातीय चिह्नों के लिये बहुत ही प्रसिद्ध है। जालीय गाथाओं और चिह्नोपर मर मिटनेवाले लोग इस भन्न स्थानपर बड़े प्रेम और श्रद्धाके साथ आते और गाँवका खूडा केवट सुक्खू चौधरी उन्हें उसकी परिक्रमा करावा और रानीके महल, राजाका दरबार और कुअरके बैठकके मिटे हुए चिह्नोंको दिखाता। वह एक उच्छ्वास लेकर ऊँधे हुए गलेसे कहता-महाशय ! एक बह समय था कि केवटोंको मछलियोके इनाममे अशर्फियाँ मिलती थी। कहार महल में झाड़ देते हुए