पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/८८

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बेटीका धन . का दौरा हुआ और वह यहाके पुरातन चिह्नोंकी सैर करनेके लिये पधारे, तो सुक्खू चौधरीने दबी जबानसे अपने गाँववालोंकी दुख कहानी उन्हें सुनायी। हाकिमोंसे वार्तालाप करनेमें उसे तनिक भी भय न होता था। सुक्खू चौधरीको खूब मालूम था कि जीतनसिंहसे रार मचाना सिंह के मुंह में सिर देना है। किन्तु जब गाँववाले कहते थे कि चौधरी तुम्हारी ऐसे-ऐसे हाकिमोंसे मिताई है और हम लोगोंको रातदिन रोते कटता है तो फिर तुम्हारी यह मित्रता किस दिन काम आवेगी। 'परोपकाराय सताम् विभूतयः। तत्र सुक्सूका मिजाज आसमानपर चल जाता था। घड़ी भरके लिये वह जीतनसिंहको भूल जाता था। मजि. 'स्टेटने जीतनसिंहसे इसका उत्तर माँगा। उधर झगड़ साहुने... चौधरीके इस साहसपूर्ण स्वामीद्रोहकी रिपोर्ट जीतनसिंह को दी। बकुर साहब जलकर आग हो गये। अपने कारिन्देसे बकाया लगानकी बही मॉगी। स्योगवश चौधरीके जिम्मे इस सालका कुछ लगान बाकी था। कुछ तो पैदावार कम हुई, उसपर गङ्गा- अलीका व्याह करना पड़ा। छोटी बहू नथकी रट लगाये हुए थी, वह बनवानी पड़ी। इन सब खर्चाने हाथ बिलकुल खाली कर दिया था। लगानके लिये कुछ अधिक चिन्ता नहीं थी। वह इस अभिमानमें भूला हुआ था कि जिस जबानमें हाकिमों के प्रसन्न करनेकी शक्ति है क्या वह ठाकुर साहबको अपना लक्ष्य न बना सकेगी? बूढ़े चौधरी इधर तो अपने गर्वमें निश्चिन्त थे और उधर उनपर बकाया लगानकी नालिक ठुक गयी। सम्मन आ पहुँचा। दूसरे दिन पेशीकी तारीख पड़ गयी। चौधरीको अपना झाडू चलानेका अवसर न मिला।