पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/९०

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बेटीका घन ८७ पड़े घण्टों अपने कुलदेव महावीर और महादेवको मनावा और उनका गुण गाया करता। उसकी चिन्तादग्ध आत्माको और कोई सहासन था। इसमें कोई सन्देह न था कि चौधरीकी तीनों बहुओंके पास गहने थे, पर स्त्रीका गहना ऊखका रस है, जो पेरने हीसे निक- लता है। चौधरी जातिका ओछा पर स्वभावका ऊँचा था। उसे ऐसी नीच बात बहुओसे कहते सकोच होता था, कदाचित् यह नीच विचार उसके हृदयमे उत्पन्न ही नहीं हुआ था, किन्तु तीनों बेटे यदि जरा मी बुद्धिसे काम लेते तो बृढ को देवताओकी शरण लेनेकी आवश्यकता न होती। परन्तु यहाँ तो बात ही निराली थी। बड़े लडकेको घाटके कामसे फुरसत न थी। बाकी दो लड़के इस जटिल प्रश्नको विचित्र रूपसे इल करने के मसूत्रे बाँध रहे थे। मझले झीगुरने मुंह बनाकर कहा है ! इस गाँवमे क्या घरा है। जहाँ ही कमाऊँगा वही खाऊँगा। पर जीतनसिंहकी मूंछे एक एक करके चुन 'गा। छोटे फक्कड ऐठकर बोले-मू, तुम चुन लेना। नाक उड़ा दूंगा । नककटा बना घूमेगा। इसपर दोनो खूब हंसे और मछली मारने चल दिये। इस गाँवमें एक बूढ़े बाहरण भी रहते थे। मन्दिर में पूजा करते और नित्य अपने यजमानोंको दर्शन देने नदी पार जाते, पर खेवेके पैसे न देते । तीसरे दिन वह जमींदारके गुप्तचरोंकी आँख बचाकर सुक्खूके पास आये और सहानुभूतिके स्वरमे बोले- चौघरी! कल ही तक मियाद है और तुम अभीतक पड़े पड़े स्रो