पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/९२

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८६ बैटीका धन अवश्य मान जायेंगे, परन्तु दादाको कत्र यह स्वीकार होगा । वह यदि एक दिन बड़े साहबके पास चले जायें तो सब कुछ बात-की- बातमें बन जाय । किन्तु उनकी तो जैसे बुद्धि ही मारी गयी है। इसी उधेड़-बुनमें उसे एक उपाय सूझ पड़ा, कुम्हलाया हुआ मुखारविन्द खिल उठा । पुजारीजी सुक्खू चौधरीके पाससे उठकर चले गये थे और चौधरी उच्च स्वरसे अपने सोये हुए देवताओंको पुकार पुकारकर बुला रहे थे। निदान गङ्गाजली उनके पास जाकर खड़ी हो गयी। चौधरीने उसे देखकर विस्मित स्वरमें पूछा-क्यों बेटी! इतनी रात गये क्यों बाहर आयी? गङ्गाजलीने कहा-बाहर रहना तो भाग्यमें लिखा है, घरमें कैसे रहूँ। सुक्खूने जोर से हॉक लगाई-कहाँ गये तुम कृष्ण मुरारी, मेरे दुःख हरो। गङ्गाजली खड़ी थी, बैठ गयी और धीरेसे बोली-भजन गाते तो आज तीन दिन हो गये।-घर बचानेका कुछ उपाय सोचा कि इसे यों ही मिट्टीमें मिला दोगे? हम लोगोंको क्या पेड़ तले रखोगे। चौधरीने व्यथित स्वरसे कहा-बेटी। मुझे तो कोई उपाय नहीं सूझता। भगवान जो चाहेंगे होगा। बेग चलो गिरधर मोपाला, काहे विलम्ब करो। गङ्गाजलीने कहा-मैंने एक उपाय सोचा है, कहो तो कहूँ। चौधरी उठकर बैठ गये और पूछा-कौन उपाय है बेटी। जहाजलीने कहा-मेरे गहने झगडू साहुके यहाँ गिरों रख