पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/९३

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प्रेम-पूर्णिमा दो। मैंने जोड लिया है। देने भरके रुपये हो जायेंमे । चौधरीने ठगदी साँस लेकर कहा-बेटी! तुमको मुझसे यह बात कइते लाज नही आती। वेद शास्त्रमे मुझे तुम्हारे गॉवके कुएका पानी पीना भी मना है। तुम्हारी ड्योढ़ीमें पैर रखनेका निषेध है। क्या तुम मुझे नरकमे ढकेलना चाहती हो ? गङ्गाजली उत्तरके लिये पहले हीसे तैयार थी, बोली- अपने गहने तुम्हें दिये थोडे ही देती हूँ। इस समय लेकर काम चलाओ चैतमे छुड़ा देना। चौधरीने कड़ककर कहा-यह मुझसे न होगा। गङ्गाजली उत्तेजित होकर बोली-तुमसे यह न होगा तो मैं आप हो जाऊँगी, मुझसे घरकी यह दुर्दशा नहीं देखी जाती। चौधरीने झुंझलाकर कहा-विरादरी में कौन मुंह दिखाऊँगा? गङ्गाजलीने चिढकर कहा-विरादरीमे कौन ढिढोरा पीटने नाता है। चौधरीने फैसला सुनाया--जग हेसाईके लिये मैं अपना धर्म न बिगाहूँगा। गङ्गाजली बिगड़कर बोली-मेरी बात नहीं मानोगे तो तुम्हारे ऊपर मेरी हत्या पड़ेगी। मै आज ही इस बेतवा नदीमें कूद पहूँगी। तुमसे चाहे घर में आग लगाते देखा जाय, पर मुझसे न देखा जायमा । चौधरीने ठगढी सॉस लेकर कातर स्वरमे कहा -बेटी, मेरा धर्म नाश मत करो। यदि ऐसा ही है तो अपनी किसी भावजके गहने माँगर लाओ। मङ्गाजलीने गम्भीर भावसे कहा-भावजोंसे कौन अपना