पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/९४

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बेटीका धन मुँह नोचवाने जायगा, उनको फिकर होती तो क्या मुंहमे दही जमा या, कहती नहीं? चौधरी निरुत्तर हो गये। गङ्गाजली घरमे जाकर गहनोंकी पिटारी लायी और एक एक करके सब गहने चौधरीके अंगोछेमें बाँध दिये। चौधरीने ऑखोमे आँसू भरकर कहा--हाय राम: इस शरीरकी क्या गति लिखी है। यह कहकर उठे। बहुत सम्हालनेपर भी ऑखोंमें ऑसू न छिपे । [४] रातका समय था। बेतवा नदीके किनारे-किनारे मार्गको छोड़कर सुक्खू चौधरी गहनोंकी गटरी कॉखमे दबाये इस तरह चुपके चुपके चल रहे थे, मानो पायकी गठरी लिये जाते हैं। जब ब्रह झगड साहुके मकानके पास पहुँचे तो ठहर गये, ऑखे खूब साफ की, जिसमें किसीको यह बोध न हो कि चौधरी रोता था! झगड़, साहु धागेकी कमानीकी एक मोटी ऐनक लगाये बही- खाता फैलाये हुक्का पी रहे थे और दीपकके धुंधले प्रकाश में उन अक्षरोके पटनेकी व्यर्थ चेष्टामें लगे थे जिनमे स्याहीकी बहुत किफायत की गई थी। बार बार ऐनकको साफ करते और ऑख मलते, पर चिरागकी बच्ची उसकाना या दोहरी बत्ती लगाना शायद इसलिये उचित नही समझते थे कि तेलका अपव्यय होगा। इसी समय सुक्खू चौधरीने आकर कहा-जै रामजी।. अगड़, साहुने देखा । पहचानकर बोले-जय राम चौधरी । कहो, मुकद्दमे में क्या हुआ ? यह लेन देन बड़े झझटका काम है। दिनभर सिर उयनेकी छुट्टी नहीं मिलती।