पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/९५

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प्रेम-पूर्णिमा ९२ चौधरीने पोटलीको खूब सावधानीने छिपाकर लापरवाहीके साथ कहा-अभीतक तो कुछ नहीं हुआ। कल्द इजराय डिगरी होनेवाली है। अकुर साहबने न जाने कबका और निकाला है। हमको दो-तीन दिनकी भी मुहलत होती तो डिगरी न जारी होने पाती। छोटे साहब और बड़े साहब दोनों हमकों अच्छी तरह जानते हैं। अभी इसी साल मैने उनसे नदी किनारे घण्टों बातें की। किन्तु एक तो बरसातके दिन, दूसरे एक दिनकी भी मुहलत नही, क्या करता । इस समय मुझे रुपयोंकी चिन्ता है। झगड साहुने विस्मित होकर पूछा-'तुमको रुपयोंकी चिन्ता ! घरमें भरा है वह किस दिन काम आवेगा। झगड़- साहुने यह व्यंग्यवाण नहीं छोड़ा था। वास्तवमें उन्हें और सारे गाँवको विश्वास था कि चौधरीके घरमें लक्ष्मी महारानीका अखण्ड राज्य है। चौधरीका रंग बदलने लगा। बोले-साहुजी ! रुपया होता तो किस बातको चिन्ता थी ? तुमसे कौन छिपाव है ? आज तीन दिनसे घरमें चूल्हा नही जला, रोना-पीटना पड़ा है। अब तो तुम्हारे बसाये बसू गा। अकुर साहबने तो उजाड़ने में कोई कसर न छोड़ी। मगढ़, साहु जीतनसिहको खुश रखना जरूर चाहते थे, पर साथ ही चौधरीको भी नाखुश करना मजूर न था। यदि सूद दर सूद जोड़कर मूल तथा ब्याज सहजमें वसूल हो जाय तो उन्हें चौधरीपर मुफ्नका एहसान लादनेमे कोई आपत्ति न थी। यदि चौधरीके अफसरोंकी आन-पहिचानके कारण साहुजीका टैक्ससे गला छूट जाय, जो अनेकों उपाय करने, अहलकारोंकी मुट्ठी-